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कैसे प्रस्ताव (proposal) लिखें

यह आर्टिकल लिखा गया सहयोगी लेखक द्वारा Dave Labowitz . डेव लेबोविट्ज़ एक बिजनेस कोच है जो पूर्व-उद्यमियों, एकल उद्यमियों/उद्यमियों की मदद करते हैं और टीम के नेताओं को अपने व्यवसायों और टीमों को शुरू करने, स्केल करने और नेतृत्व करने में मदद करते हैं। अपने कोचिंग करियर की शुरुआत करने से पहले, डेव एक स्टार्टअप एक्जीक्यूटिव थे, जिन्होंने एक दशक से अधिक समय तक उच्च-विकास वाली कंपनियों का निर्माण किया। डेव के “पाथ लेस ट्रेवल्ड” जीवन में हाई स्कूल से ड्रॉप आउट करने, स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट में एक बुक का सह-लेखन, और पेपरडाइन के ग्राज़ियाडियो बिजनेस स्कूल में एमबीए प्राप्त करने जैसे रोमांच शामिल हैं। यहाँ पर 10 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं। यह आर्टिकल ५७,३३८ बार देखा गया है।

एक अच्छा प्रस्ताव या प्रपोजल (proposal) लिखना कई लिहाज से जरूरी होता है, व्यवसाय, स्कूल और बिजनस मैनेजमेंट से लेकर जियॉलॉजी (geology) सभी के लिए यह काफी महत्वपूर्ण योग्यता मानी जाती है। उपयुक्त लोगों को सूचना देकर उनका समर्थन प्राप्त करना एक अच्छे प्रपोजल का लक्ष्य है। अगर आप अपने विचारों और सुझावों को स्पष्ट रूप से, संक्षिप्त में, और आकर्षक रूप से पेश करेंगे, तो संभवतः लोग इनका समर्थन करेंगे। एक प्रभावी और आकर्षक प्रपोजल लिखने की जानकारी कई कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिए आवश्यक है। प्रपोजल अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे साइंस प्रपोजल और बुक प्रपोजल (book proposals), लेकिन बेसिक गाइडलाइन सभी प्रपोजल्स के लिए एक ही है।

अपने प्रपोजल की योजना बनाना

Step 1 अपने ऑडीअन्स को परिभाषित करें:

  • आपका प्रपोजल कौन पढ़ेंगा? उनको आपके विषय के बारे में कितनी जानकारी हो सकती है? अपने विषय के बारे में आप क्या परिभाषा या अधिक जानकारी देना आवश्यक मानते हैं?
  • अपने प्रपोजल से अपने ऑडीअन्स को आप क्या देना चाहेंगे? अपने ऑडीअन्स को आप क्या जानकारी देना चाहेंगे जिससे वह वही निर्णय लेंगे जो आप चाहते हैं?
  • अपने शब्द स्पष्ट लिखें ताकि आप अपने ऑडीअन्स को उम्मीदों और कामनाओं से परिचय करवा सकें। वह क्या सुनना चाहेंगे? उन्हें विषय के बारे में परिचय देने का सबसे उचित तरीका क्या है? आप अपने विषय के बारे में ऑडीअन्स को कैसे समझा पायेंगे?

Step 2 अपने विषय को ठीक तरह परिभाषित करें:

  • आपका विषय किन परिस्थितियों में लागू हो सकता है?
  • इस विषय को चुनने के पीछे क्या कारण हैं?
  • क्या आप निश्चिंत हैं कि यही सही कारण है, बाकी नहीं? आप इसकी कैसे पुष्टि करेंगे?
  • क्या इससे पहले किसी और व्यक्ति ने भी इस विषय के बारे में जानकारी हासिल करने कि कोशिश की है?
  • अगर जवाब हाँ है: क्या वह सफल हुए हैं? क्यों?
  • अगर जवाब नहीं है: क्यों सफल नहीं हुए हैं?

Step 3 अपने सुझाव की परिभाषा करें:

  • अपने प्रपोजल में एक मसले की परिभाषा “और” उसका सुझाव देना आवश्यक है, जिससे रसहीन, संशयी ऑडीअन्स आपके प्रपोजल का समर्थन कर सकें। [५] X रिसर्च सोर्स अपने ऑडीअन्स के मन को जीतना इतना आसान नहीं होगा। क्या आपका सुझाव तार्किक और सहज है? अपने सुझाव को अमल करने का घटनाक्रम क्या है?
  • अपने सुझाव को उद्देश्य की तरह लिहाज करने की कोशिश करें। आपका प्राथमिक उद्देश्य वह लक्ष्य है जिसे आपको अपने प्रॉजेक्ट में सिद्ध करना अनिवार्य है। माध्यमिक उद्देश्य वह लक्ष्य हैं जिसे आप सिद्ध करने की उम्मीद करते हैं।
  • अपने सुझाव को “नतीजा” (outcomes) और “प्रदेय” (deliverables) के रूप में समझना एक और लाभदायक तरीका है। अपने उद्देश्य के नतीजे परिमाणित अंत हैं। उदाहरण के लिए, अगर आपका प्रपोजल किसी बिजनस प्रॉजेक्ट के लिए है और आपका उद्देश्य “मुनाफा बढ़ाना” है, तो आपका नतीजा “रु. 1,00,000 का मुनाफा कमाना” हो सकता है। प्रदेय ऐसे उत्पाद या सेवा हैं जिसे आप अपने प्रॉजेक्ट के साथ “प्रदान” करते हैं। उदाहरण के लिए, विज्ञान प्रॉजेक्ट के प्रपोजल में एक नई दवाई या टीका (vaccine) को “प्रदान” करने का विवरण हो सकता है। ऑडीअन्स प्रपोजल में नतीजे और प्रदेय की खोज करते हैं, क्योंकि किसी प्रॉजेक्ट का “मूल्य” तय करने के लिए यह सबसे आसान तरीकों में से एक माना जाता है। [६] X रिसर्च सोर्स

Step 4 लिखने की शैली का ध्यान रखें:

  • शब्दावली (विशिष्ट तकनीकी बोली) अपनाने के बारे में ध्यान रखें। प्रभावशाली रचना शब्दावली (jargon) मुक्त होते हैं जब तक आप किसी विषय को शब्दावली के बिना वर्णन नहीं कर सकते। “श्रमिक संख्या की असंतुलन में सुधार” और “कर्मचारियों को जाने देना” के बीच में अंतर का विचार करें। द्वितीय तथ्य न सिर्फ स्पष्ट और प्रासंगिक है, यह कम शब्दों का इस्तेमाल करता है, ताकि अपने विचारों के बारे में आप ज़्यादा विवरण दे सकते हैं। [७] X रिसर्च सोर्स
  • आप लोगों को कैसे यक़ीन दिला सकते हैं? प्रपोजल को विश्वसनीय बनाने के लिए भावुक गुहार का प्रयोग करें, पर इसके लिए अपने दलील को तथ्य के आधार पर निर्भर होना चाहिए। उदाहरण के लिए, बाघ संरक्षण के प्रपोजल में आप चर्चा कर सकते हैं कि कितना दुखद होगा जब आने वाली पीढ़ी के बच्चे कभी बाघ नहीं देख पाएंगे, पर यह “रुकना” नहीं चाहिए। इस दलील को विश्वसनीय बनाने के लिए तथ्य और सुझाव के आधार पर निर्भर होना चाहिए।

Step 5 सारांश लिखें:

  • अपने सारांश में आपका मसला, आपका सुझाव, कैसे इसका समाधान निकालेंगे, आपका सुझाव क्यों उचित है, और एक समाप्ति शामिल होनी चाहिए। अगर आप एक कार्यकारी (executive) प्रपोजल तैयार कर रहे हैं, तो आपको बज़ट विश्लेषण और व्यवस्थापन जानकारी को प्रपोजल में शामिल करना होगा।

अपने प्रपोजल को लिखना

Step 1 मजबूत परिचय से प्रारंभ करें:

  • अगर आप किसी अटल सत्य से अपने विषय पर रोशनी डाल सकते हैं तो तुरंत इसे संबोधित करें, इससे शुरू करना आपके लिए सबसे कुशल विचार साबित होगा। जो भी है, निश्चित करें कि आप एक सत्य के साथ शुरू कर रहे हैं और यह आपका अभिप्राय नहीं है।

Step 2 अपने मसले को व्यक्त करें:

  • अपने मसले का समाधान क्यों निकालने की ज़रूरत है और इसे क्यों अभी सुलझाने की ज़रूरत है, इस विषय पर जोर दें। अगर ऐसे ही छोड़ दिया तो आपके ऑडीअन्स पर क्या असर होगा? सुनिश्चित करें कि आप सारे प्रश्नों का उत्तर शोध और हकीकत के साथ पेश करें। विश्वसनीय स्तोत्र को उदारता से प्रयोग करें।
  • अपने प्रपोजल को विशेषक से घेरा या उलझन करने या इधर-उधर की बातें करने की कोशिश न करें। इस अनुभाग के ज़रिये अपने ऑडीअन्स को विश्वास दिलाना चाहिए कि एक मसला है, और वह महत्वपूर्ण है। “मुझे भरोसा है कि मेरे प्रपोजल से ज़िले की गरीबी पर काफी असर पड़ेगा” लिखने से आपके ऑडीअन्स को किसी बात पर विश्वास नहीं होगा। सीधा और संक्षिप्त रहें। “इस प्रस्तावित योजना से ज़िले में गरीबी को हटाना उल्लेखनीय है,” ज़्यादा विश्वसनीय है।

Step 3 सुझाव प्रस्तुत करें:

  • अपने विचारों के असर के बारे में चर्चा करें। जिन विचारों की उपयुक्तता सीमित हैं वह ऑडीअन्स में उत्सुकता नहीं भर सकते, जितनी उन विचारों की उपयुक्तता, उतना ही व्यापक उसका असर हो सकता है। उदाहरण के लिए: “टूना मछली के व्यवहार के बारे में बेहतर ज्ञान प्राप्त करने से हम एक ज़्यादा विस्तृत अनुशासन करने की योजना बना सकते हैं और भविष्य की पीढ़ी को टूना मछली कैन करना पक्का कर सकते हैं।”
  • अपने प्रपोजल में आप क्या करना चाहेंगे उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि आप “क्यों” वह करना चाहेंगे। मान लेते हैं कि आपके ऑडीअन्स संशयी हैं और वह आपके विचारों से प्रत्यक्ष मूल्य पर सहमत नहीं हैं। अगर आप 2000 टूना मछली पकड़ कर-शोध करके-उन्हें छोड़ने का प्रपोजल पेश करते हैं, तो क्यों? क्या इससे बेहतर कोई विकल्प है? अगर यह महंगा विकल्प है, तो इससे सस्ता विकल्प को क्यों नहीं चुन सकते? पूर्वानुमान करके और ऐसे प्रश्नों का उत्तर तैयार करने से आपके ऑडीअन्स को पता चलेगा कि आपने अपने विचारों के हर पहलू पर गौर किया है।
  • आपके प्रपोजल को पढ़ने के बाद आपके ऑडीअन्स को लगना चाहिए कि आप इस मसले का कुशलतापूर्वक हल निकाल सकते हैं। जो भी आप अपने प्रपोजल में पेश करते हैं, उसमें पूरी तरह से सिर्फ मसले या उसके समाधान के बारे में होना चाहिए।
  • बड़े पैमाने पर प्रपोजल का शोध करें। जितने ज़्यादा उदाहरण और तथ्य आप अपने ऑडीअन्स को पेश करेंगे, उतना बेहतर होगा – यह ज़्यादा विश्वसनीय होगा। अपने अभिप्राय का त्याग करें और दूसरों के ठोस शोध पर भरोसा करें।
  • अगर आपके प्रपोजल में पेश किए गए सुझाव सफल साबित नहीं हो सकता है, तो वह सुझाव उचित नहीं है। अगर आपका सुझाव सहज नहीं है, तो उसे बाहर निकाल दें। अपने सुझाव के परिणाम के बारे में भी ध्यान रखें। अगर हो सके तो अपने सुझाव का पूर्व-निरीक्षण करें और उसे बदलने की कोशिश करें।

Step 4 सूची और बज़ट को शामिल करें:

  • आप अपना प्रॉजेक्ट कब शुरू करने की कल्पना कर रहे हैं? आपके प्रॉजेक्ट की प्रगति का रफ्तार क्या होगा? हर कदम पिछले कदम पर कैसे आधारित होगा? क्या कुछ चीजों को एक-साथ कर सकते हैं? जितना हो सके कुशल बने ताकि अपने ऑडीअन्स को विश्वास दिला सकें कि आप आवश्यक कार्य करके आये हैं और उनका निवेश व्यर्थ नहीं जाएगा।
  • सुनिश्चित कर लें कि आपका प्रपोजल आर्थिक रूप से सुदृढ़ है। अगर आप अपने प्रपोजल को किसी कंपनी या व्यक्ति को पेश कर रहे हैं, तो उनके बज़ट पर ध्यान रखें। अगर वह आपके प्रपोजल का खतरा नहीं उठा सकते, तो आपका प्रपोजल समुचित नहीं है। अगर प्रपोजल उनके बज़ट से तालमेल रखता है, तो उनके समय और पैसे का मूल्य शामिल करना न भूलें।

Step 5 निष्कर्ष के साथ समाप्त करें:

  • अगर आपके प्रपोजल में कुछ अतिरिक्त तथ्य हैं जो सही मायने में अनुरूप नहीं हैं, तो आप एक अतिरिक्त अनुभाग (appendix) को जोड़ें। परंतु आप यह भी जानते हैं कि जितना मोटा आपका प्रपोजल होगा, लोग इसे देखकर डर जाएंगे। अगर आपको संदेह है, तो इस भाग को शामिल न करें।
  • अगर आपके प्रपोजल में दो से ज़्यादा अनुभाग है, तो उन्हें क, ख, आदि से नामांकन करें। यह आप तब इस्तेमाल कर सकते हैं जब आपके पास आंकड़ा पत्रक (data sheet), पुनः प्रकाशित उल्लेख (reprint of articles), या समर्थन पत्र (letters of endorsement) जैसे दस्तावेज़ हैं। [१३] X रिसर्च सोर्स

Step 6 अपने प्रपोजल को संपादित करें:

  • एक (या दो) लोगों को अपने प्रपोजल पर नज़र डालने को कहें। वह प्रपोजल में समस्याओं को चिन्हांकित कर सकते हैं जिसे आपने नजरंदाज किया होगा। ऐसी समस्याएं होंगे जिन्हें आप पूरी तरह से संबोधित करना भूल गए होंगे या ऐसे प्रश्न जिन्हें आपने खुला छोड़ दिया है।
  • शब्दावली (jargon) और पिष्टोक्ति (clichés) का प्रयोग न करें! इससे ऑडीअन्स को लगेगा कि आप आलसी है और उनके समझने में बाधा डाल सकते हैं। जहाँ छोटे शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं वहां लंबे शब्द का इस्तेमाल न करें। [१६] X रिसर्च सोर्स
  • जहाँ तक हो सके कर्मवाच्य (passive voice) का प्रयोग करना टालें। कर्मवाच्य में “करना होगा” जैसे क्रियावाचक शब्द का प्रयोग होता है और आपके अर्थ अस्पष्ट हो जाएंगे। इन दो वाक्यों की तुलना करें: “खिड़की नीरस व्यक्ति (zombie) द्वारा तोड़ी गई है” और “नीरस व्यक्ति (zombie) ने खिड़की तोड़ी।” पहले वाक्य में आपको पता नहीं है कि “किसने” खिड़की तोड़ी: नीरस व्यक्ति ने तोड़ी? या फिर नीरस व्यक्ति खिड़की के पास खड़ा था जो टूटी हुई थी? दूसरे वाक्य में, वास्तव में आपको पता है कि कौन तोड़ रहा है और यह महत्वपूर्ण क्यों है।

Step 7 अपने प्रपोजल को प्रूफ-रीड (Proofread) करें:

  • आपकी ओर से कोई भी गलती आपको कम शिष्ट और विश्वसनीय दिखाई देगी, जिससे ऑडीअन्स आपके प्रपोजल को समर्थन देने के आसार कम हो जाते हैं।
  • निश्चित करें कि प्रपोजल लिखने के गाइडलाइन के अनुसार आपने फॉर्मेट किया है।
  • ऐसे शब्द का प्रयोग करें जो ऑडीअन्स आसानी से समझ सकें। छोटे वाक्य का प्रयोग करें जो स्पष्ट और प्रासंगिक है।
  • किसी भी आर्थिक या अन्य साधन के बारे में चर्चा सावधानी से करनी चाहिए और होने वाले अपेक्षित खर्च की वास्तविक तस्वीर दिखाएं।

संबंधित लेखों

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  • ↑ http://orsp.umich.edu/proposal-writers-guide-overview
  • ↑ https://owl.english.purdue.edu/media/pdf/20080628094326_727.pdf
  • ↑ http://facstaff.gpc.edu/~ebrown/pracguid.htm
  • ↑ http://www.nsf.gov/pubs/2004/nsf04016/nsf04016.pdf
  • ↑ ५.० ५.१ http://www.dailywritingtips.com/how-to-write-a-proposal/
  • ↑ http://www.plainlanguage.gov/howto/wordsuggestions/jargonfree.cfm
  • ↑ १३.० १३.१ http://orsp.umich.edu/proposals/pwg/pwgcomplete.html
  • ↑ http://www.forbes.com/sites/augustturak/2013/02/18/how-to-write-a-plan-or-proposal-that-rocks/
  • ↑ http://c.ymcdn.com/sites/www.apmp.org/resource/resmgr/podcasts/clear_prop_writing.pdf

विकीहाउ के बारे में

Dave Labowitz

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शोधप्रारूप(synopsis) कैसे बनाएँ ? how to create a research design ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI

  जब हम अपने रिसर्च कार्य का प्रारम्भ करते है तो सबसे पहले शोध विषय(research topic) का चयन करते है । शोध विषय का निश्चय करने के तुरन्त बाद यह प्रश्न आता है कि इस शोधकार्य का प्रयोजन क्या है ? तथा कैसे इस शोध कार्य को पूर्ण करना है? यही तथ्य एक प्रक्रिया के द्वारा लिखित रूप में अपने गाइड और कमेटी के समक्ष प्रस्तुत करना होता है जिसे हम शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) कहते हैं।

     शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) सही ढंग से न प्रस्तुत करने के कारण वर्षों तक यहाँ-वहाँ भटकना पड़ता है तथा शोधकार्य पिछड़ता चला जाता है।दोस्तों यदि आपने शोधप्रारूप का निर्माण सही ढंग से कर लिया याकि एक बेहतर तरीके से चरणबद्ध शोधप्रारूप सिनॉप्सिस(synopsis)  निर्मित कर ली तो यह कमेटी से शीघ्र ही पास हो जाता है । इसलिए कभी भी शोधप्रारूप का निर्माण चरणबद्ध तरीके से करें । शोधप्रारूप निर्माण के कुछ चरण निर्धारित किये गये हैं जिससे शोधप्रारूप बनकर तैयार होता है ।

शोधप्रारूप के 10 चरण(ten stages of research design)

1. परिचय पृष्ठ(introduction page), 2. प्रस्तावना(preface).

3. औचित्य(justification)

4. प्रयोजन(purpuse of research)

5. प्राक्कल्पना(hypothesis)

6. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि(historical background).

7. शोध सर्वेक्षण(research survey)

8. शोध प्रकृति(nature of research)

9. अध्याय विभाजन(chapter division)

10. सन्दर्भ-ग्रन्थ सूची(reference bibliography)

शोधप्रारूप या सिनॉप्सिस(synopsis) के यही दस चरण हैं जिससे शोधप्रारूप का निर्माण होता है । अब हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे ।

   यह सिनॉप्सिस(synopsis) का पहला पेज(front page) होता है जिसमें निम्नलिखित सूचनाएँ देते हैं-

  • युनिवर्सिटी का लोगो(logo) तथा युनिवर्सिटी का नाम(name of university)
  • शोध-विषय(research topic)
  • सत्र(year)
  • शोधनिर्देशक/निर्देशिका (name of superviser or guide)
  • अपना नाम(your name)

  प्रस्तावना वह भाग होता है जिसमें अपने शोध शीर्षक के विषय में सामान्य जानकारी देनी पड़ती है । एक तरह से यह आपके शीर्षक का सामान्य परिचय होता है । प्रस्तावना बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए । एक-एक शब्द को अच्छी तरह से जाँच-परखकर रखना चाहिए । प्रस्तावना में 300 से 500 शब्द होने चाहिए । आवश्यकतानुसार इसे घटाया बढ़ाया जा सकता है । परन्तु ध्यान रहे प्रस्तावना में व्यर्थ बातें नहीं भरनी चाहिए । जो आवश्यक बातें हो वही इस भाग में लिखें । 

3. औचित्य(justification) 

 आप जिस शीर्षक पर कार्य करने जा रहे हैं उस शीर्षक का औचित्य क्या है ? इसके बारे में यहाँ लिखना होता है। औचित्य का आशय यह है कि जिस विषय का आपने चयन किया है उस पर शोधकार्य करने की आवश्यकता क्या है । आपके इस शोधकार्य के करने से कौन-कौन सी नई बातें निकलकर आएंगी जिसके बारे में जानना जरूरी है। कभी-कभी हमें लगता है कि औचित्य और प्रयोजन एक ही बात है पर ऐसा नहीं है, इसमें अन्तर है । औचित्य भाग में केवल आपके शोध कार्य की आवश्यकता से सम्बन्धित बातों का जिक्र होता है जबकि प्रयोजन भाग में शोधकार्य के फल या परिणाम की जानकारी दी जाती है। अतः इन दोनों का अन्तर समझकर पृथक-पृथक जानकारी लिखनी चाहिए । इस भाग में यह भी बताना होता है कि इस विषय पर कितना कार्य हुआ है और क्या बाकी है । जो भाग शेष है उसकी भी पूर्ण जानकारी इसमें लिखनी चाहिए । क्योंकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिस विषय पर आप कार्य करने जा रहे हैं उस पर कार्य हुआ होता है परन्तु आपको लगता है कि नहीं यह कार्य अभी पूर्ण नहीं है , इसमें इतना भाग बचा है जिस पर शोधकार्य होना चाहिए। इसी बात की जानकारी इस भाग में देनी पड़ती है ।

4. प्रयोजन(Purpose of research)

    आपके शोधकार्य का कोई न कोई प्रयोजन होना चाहिए । जैसा कि कहा गया है -

प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोपि न प्रवर्तते॥

 अतः आपके शोधशीर्षक में एक अच्छा परिणाम, फल या प्रयोजन छुपा होना चाहिए । बिना प्रयोजन के शोध शीर्षक का चयन नहीं करना चाहिए । इस भाग में यह लिखना होता है कि आपने जो शोध शीर्षक चुना है उसका प्रयोजन क्या है ? इस शोधकार्य का परिणाम क्या होगा ? इसका जिक्र इस भाग में करना चाहिए । ध्यान रहे आपके शोध शीर्षक के विस्तार के आधार पर ही प्रयोजन का निश्चय करना चाहिए । ऐसा न हो कि जो प्रयोजन आप दिखा रहे हों वहाँ तक आपके शोध शीर्षक की पहुँच ही न हो । जैसे आपने किसी एक साहित्यिक पुस्तक पर शोधकार्य  आरम्भ किया तथा प्रयोजन में लिखा कि इस शोधकार्य से सम्पूर्ण साहित्य जगत् का कल्याण होगा । यह गलत है । साहित्य जगत् बहु-विस्तृत शब्द है । एक पुस्तक पर किया गया कार्य समग्र साहित्य का कल्याण नहीं कर सकता अतः आपके द्वारा दिखाया गया यह प्रयोजन निरर्थक है । इस विषय का सही प्रयोजन यह है कि प्रस्तुत पुस्तक पर शोध कार्य करने से इस पुस्तक से सम्बन्धित तथ्य अध्येताओं के सम्मुख आयेंगे तथा इस पुस्तक के महत्त्व का आकलन  हो सकेगा । अब आप समझ गये होंगे कि इस भाग में हमें क्या दर्शाना है । शोध शीर्षक के अनुरूप शोधकार्य का फल भी होना चाहिए । 

   शोध प्रारूप का यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है । प्राक्कल्पना का अर्थ होता है पूर्व में कल्पना करना । अपने शोध शीर्षक के विषय में हम यह बताते हैं कि यह शोधकार्य किस प्रकार से अपने मूलभूत विषय का उपस्थापन करेगा अथवा इस विषय पर हमारे शोधकार्य से किस प्रकार के प्रतिफल के आने की सम्भावना है । इस बात का वर्णन भी इस शोधप्रारूप में करना पड़ता है ।

  इस भाग में यह लिखना होता है कि आपके शोध-शीर्षक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है ? इस शीर्षक से सम्बन्धित तथ्यों का इतिहास क्या रहा है ? आपके शीर्षक को प्रभावित करने वाले कैसे-कैसे ग्रन्थ या कैसी-कैसी साहित्यिक सामग्री पूर्वकाल से ही उपलब्ध है अथवा प्राचीनकाल में आपके शोधविषय का प्रारूप क्या था ? इस भाग में शोध शीर्षक का ऐतिहासिक विवरण देना चाहिए । 

7. शोध-सर्वेक्षण(research survey)

    शोधप्रारूप का यह भाग अतीव महत्त्वपूर्ण होता है । आपने कोई भी शोध शीर्षक चुन तो लिया, शोध प्रारूप भी बना लिया , सब कुछ निश्चित हो गया कि इसी शोध विषय पर हमें कार्य करना है परन्तु बाद में कमेटी में जाकर खारिज हो गया तथा पत्र में लिखकर आ गया कि जिस विषय पर आप शोधकार्य करने जा रहे हैं उस विषय पर तो कार्य हो चुका है । तब आपका मुंह देखने लायक होता है । तो यह घटना आपके साथ घटे इससे पूर्व ही यह निरीक्षण कर लें कि जिस विषय का आपने चुनाव किया है वह अकर्तृक है अर्थात् उस पर किसी ने शोध कार्य नहीं किया है । अपने शोध प्रारूप के इस भाग में आप यही बताएंगे कि जिस विषय पर मैं शोध कार्य करने जा रहा हूँ उस विषय पर मेरे संज्ञान में कोई शोधकार्य नहीं हुआ है । इसका सर्वेक्षण हमने कर लिया है तथा यह शोध शीर्षक शोधकार्य हेतु अर्ह है ।

8. शोध-प्रकृति(nature of research)

  इस भाग में आप यह बताते हैं कि आपने अपने शोधकार्य में किस विधि या किस शोध पद्धति का इस्तेमाल किया है । आपके शोध की प्रकृति क्या है ? इस विषय में आप निश्चय करते हैं कि हमने शोधकार्य की परिपूर्णता एवं स्पष्टता हेतु किन-किन विधियों का समावेश किया है । यह प्रकृति अनेक प्रकार की हो सकती है । शोधकार्य में कहीं तुलनात्मक, कहीं विश्लेषणात्मक या कहीं विमर्शात्मक या कहीं-कहीं अन्यान्य शोध-प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है । इन्हीं विषयों की सम्भावना प्रस्तुत भाग में करनी चाहिए ।

शोध-प्रविधियों की जानकारी के लिए देखें- शोध-प्रविधियाँ ।

9. अध्याय-विभाजन(chapter division)

   इस भाग में आप अपने शोधकार्य का प्रबन्ध भाग दर्शाने हेतु अध्याय विभाजन करते हैं । आपके शोध- प्रबन्ध के अध्यायों का प्रारूप कैसा रहेगा उन बातों का विवरण आप इस भाग में लिखेंगे । आपके शोध प्रबन्ध में 5,6,7,8,9, या 10 कितने अध्याय होंगे इसका स्पष्ट उल्लेख यहां होना चाहिए । 

  अध्याय विभाजन में ध्यातव्य बातें-

- अध्यायों की संख्या आपके शोध प्रबन्ध के अनुरूप होनी चाहिए ।

- फालतू अध्याय न जोड़ें जिसका आपके शोध प्रबन्ध में कोई महत्त्व न हो ।

- अध्यायों में विशिष्ट  तथ्यों से सम्बन्धित सब-टाइटल(sub-title) का प्रयोग करें ।जैसे-

अध्याय.1 के अन्तर्गत 1.1,1.2,1.3,...आदि या(क),(ख),(ग)... इत्यादि ।

- अध्याय विभाजन में सर्वप्रथम भूमिका फिर अध्यायों का क्रम पुनः उपसंहार अन्त में परिशिष्ट की योजना करनी चाहिए । 

10. सन्दर्भ ग्रन्थ सूची(reference bibliography)

   शोध प्रारूप का यह अन्तिम भाग है । इस भाग में आपके शोध विषय में प्रयुक्त ग्रन्थों की जानकारी यहाँ देनी पड़ती है । सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में ग्रन्थ के लेखक, रचयिता या सम्पादक का नाम, ग्रन्थ का नाम या शीर्षक, प्रकाशक का नाम , प्रकाशन स्थल , संस्करण एवं वर्ष का क्रमशः उल्लेख करना चाहिए । पत्र-पत्रिकाओं या इन्टरनेट की भी यदि सहायता ली गई है तो इसका भी उल्लेख आप यहाँ कर सकते हैं ।

  सबसे अन्त में नीचे बाएँ दिनाङ्क एवं स्थान का सङ्केत करना चाहिए तत्पश्चात् उसके नीचे बाँए ही साइड मार्गदर्शक का नाम एवं  दायें अपना नाम एवं हस्ताक्षर अङ्कित करना चाहिए ।

हमें आशा है आपको यह लेख पसन्द आयेगा । आपको यह लेख कैसा लगा इसके बारे में कमेन्ट बॉक्स में लिखकर हमें प्रेषित करें । यदि सम्बन्धित विषय में किसी प्रकार की आशंका है तो भी कॉमेन्ट करके अवश्य सूचित करें ।  

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शोधप्रारूप(synopsis) कैसे बनाएँ ? how to create a research design ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI

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thanks for a lovly feedback

महादय: शोधप्रारूपस्य उत्तमम् रित्याम् विवरणं दत्तवान्। शोधर्थि कृत्ते उपयोगि भवेत्।

research project ka hindi

धन्यवाद, यदि आप सभी के काम आ सकूँ तो स्वयं को सफल मानूँगा। यदि आप इससे लाभान्वित हुए हों तो और मित्रों को भी प्रेरित करें ।

Thank you sir ek synopsis bhej dijiye koi ho apke pass toh

Koi AK synopsis bhejen sir

Thanks Sir 🙏

research project ka hindi

बहुत अच्छा विवरण। इस सम्बन्ध में आपसे सम्पर्क किया जा सकता है?

जी हाँ हमसे सम्पर्क करने के लिए हमारे ईमेल आईडी [email protected] या फोन नंबर 7376572355 पर सम्पर्क कर सकते हैं धन्यवाद 🙏🙏

बहुत बहुत धन्यवाद सर आपने एक एक चरण को बेहतर ढंग से समझाया हैं 🙏🙏

धन्यवाद भाई 🙏🙏

Bahut hi sundar prasentation sir..

Babu ki sundar lekh dhanyavad

बहुत ही सुंदर जानकारी

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Bharat mein madhyamik Shiksha ki samasya per shodh

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Popular posts, नीतिशतक प्रश्नोत्तरी (important questions from nitishatakam), नीति शतक श्लोक संख्या (२१-३०) हिन्दी अनुवाद सहित, जेहि का जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलहिं न कछु संदेहू॥.

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अनुसंधान की परिभाषाएं

अनुसंधान या शोध की अवधारणा | अनुसंधान या शोध की परिभाषाएं | शोध के उद्देश्य | उद्देश्य के आधार पर शोध के प्रकार

अनुसंधान या शोध की अवधारणा | अनुसंधान या शोध की परिभाषाएं |   शोध के उद्देश्य | उद्देश्य के आधार पर शोध के प्रकार | Research or research concept in Hindi | Definitions of research or research in Hindi | Research Objectives in Hindi | Types of research based on purpose in Hindi

Table of Contents

अनुसंधान या शोध की अवधारणा | अनुसंधान या शोध की परिभाषाएं

(Concept and Definitions of Research)

शोध, खोज, अन्वेषण, अनुसंधान वास्तव में एक ही वैज्ञानिक प्रक्रिया के पर्यायवाची हैं। इतिहास में शोध की प्रक्रिया के जनक प्रो. जे.बी. ब्यूरी थे। उनका मत था कि, “इतिहास एकाकी विज्ञान है न कम और न अधिक।” ब्यूरी के बाद, नेवूहर एवं राके (जर्मनी), ऐक्टन (ब्रिटेन), कार्ल बेकर (अमेरिका), रैने (फ्रांस) आदि ने भी इसका समर्थन किया और इतिहास में शोध की आधारशिला रखी। इन्होंने ऐतिहासिक शोध की आधुनिक विधाओं और आलोचना पद्धति की विधि प्रतिपादित की हैं।

19वीं शताब्दी में ऐतिहासिक शोध की वैज्ञानिक प्रणाली को परिपक्वता एवं प्रौढ़ता प्राप्त हुई। बर्नहॉम, आंग्लाय तथा सेनावास ने ऐतिहासिक अध्ययन की वैज्ञानिक प्रणाली के माध्यम से अतीत के अनेक मौलिक तथ्यों को अपने समसामयिक समाज के सम्मुख उद्घाटित किया।

कार्ल बेकर ने 1931 में अमेरिकन इतिहास परिषद के अपने अध्यक्षीय भाषण में इसकी व्याख्या करते हुए कहा था, “ऐतिहासिक शोध वह वैज्ञानिक विधा है जिसमें एक इतिहासकार केवल उन तथ्यों का चयन करता है जिसे उसका समाज महत्वपूर्ण बताता है और केवल उन प्रतिमानों को पाने का प्रयास करता है जिन्हें पाने के लिये उसका समाज निर्देशित करता है।”

लेकिन कार्ल बेकर के उक्त मत का खण्डन करते हुए बर्नहीम ने लिखा है, “शोध स्वयंमेव इतिहास नहीं, अपितु इतिहासकार द्वारा अपने लक्ष्य तक पहुँचने का एक साधन तथा प्रक्रिया है। अतएव शोध का अभिप्राय केवल समाज -निर्दिष्ट अतीत के अंतर्निहित प्रतिमानों को खोजना ही नहीं, अपितु इसके अतिरिक्त कुछ और भी है।”

शेकअली के अनुसार, ” शोध एक प्रक्रिया है जिसका अभिप्राय अतीत सम्बन्धी नीवन तथ्यों को प्रकाश में लाना तथा ज्ञान की सीमा को विस्तृत करता है।”

रेनियर के अनुसार, “शोधकर्ता का उद्देश्य नवीन तथ्यों की खोज करना, उपलब्ध तथ्यों का संशोधन करना तथा नवीन साक्ष्यों के आधार पर अतीत की घटना का यथार्थ एवं परिकल्पनात्मक प्रस्तुतिकरण होता है।”

एच.सी. हॉकेट का कहना है, “शोध का अभिप्राय अतीतकालिक घटना के सम्बन्ध में नवीन सूचना तथा विचार का प्रस्तुतिकरण होता है।”

शोध के उद्देश्य (शोध के उद्देश्यों का वर्णन)

(Objectives of Research)

शोध के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं- (1) सैद्धान्तिक उद्देश्य, (2) व्यावहारिक उद्देश्य तथा (3) व्यक्तिगत उद्देश्य |

(1) सैद्धान्तिक उद्देश्य- शोध मूल रूप से ज्ञान की वृद्धि का साधक है। इस दृष्टि से शोध का सैद्धान्तिक उद्देश्य तथ्यों, घटनाओं अथवा समस्याओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करना है जिससे पुराने तथ्यों का सत्यापन, नये तथ्यों की खोज, नये सिद्धान्तों का निर्माण तथा परीक्षण किया जाता है। इस प्रकार शोध के निम्नलिखित सैद्धान्तिक उद्देश्य हो सकते हैं-

(i) शोध का उद्देश्य प्रयोगों द्वारा सिद्ध तथ्यों के आधार पर अवधारणाओं की रचना करना है।

(ii) शोध द्वारा पुराने तथ्यों की जाँच एवं नवीन तथ्यों की जानकारी की जाती है।

(iii) शोध का उद्देश्य पूर्व स्थापित सिद्धान्तों की जाँच तथा परीक्षण करना है।

(iv) शोध का उद्देश्य घटना एवं तथ्यों के मध्य कार्य, कारण, सम्बन्ध को खोजना भी है।

(2) व्यावहारिक उद्देश्य- यद्यपि शोध का प्राथमिक उद्देश्य सैद्धान्तिक ज्ञान में अभिवृद्धि करना होता है तथापि उस ज्ञान का व्यावहारिक धरातल पर उपयोग न होने पर ऐसा शोध अर्थहीन हो जाता है। अतः शोध के व्यावहारिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) शोध के द्वारा सर्वोत्कृष्ट विकल्प की खोज की जाती है।

(ii) शोध के द्वारा भविष्य के लिये योजनाओं के निर्माण में सहायता मिलती है।

(iii) शोध का व्यावहारिक उद्देश्य सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं का समाधान करने में सहायक होना भी है।

(iv) शोध के द्वारा किसी घटना के स्वरूप व कारणों के बारे में गहन जाँच कर उस समस्या को नियन्त्रित करने में सहायता मिलती है।

(v) शोध के द्वारा विभिन्न चरों (Variables) में परस्पर सम्बन्ध स्थापित कर परिकल्पनाओं (Hypothesis) को स्वीकृत अथवा अस्वीकृत किया जाता है।

(vi) शोध राजकीय तथा आर्थिक नीतियों का आधार प्रदान करता है।

(vii) शोध व्यवसाय तथा उद्योग की क्रियात्मक तथा नियोजन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है।

(viii) शोध के द्वारा सामाजिक सम्बन्धों तथा समस्याओं का समाधान ढूँढने की सहायता मिलती है।

(3) व्यक्तिगत उद्देश्य- यहाँ प्रश्न यह उठता है कि एक व्यक्ति अन्ततः शोध करने के लिये क्यों अभिप्रेरित होता है? इस प्रश्न के उत्तर में शोध के व्यक्तिगत उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं-

(i) शोध के आधार पर रोजगार तथा उन्नति प्राप्त, हो सकती है क्योंकि बहुत से ऐसे व्यवसाय हैं जिनमें प्रवेश करने के लिये एक व्यक्ति को शोध करना आवश्यक होता है।

(ii) एक व्यक्ति समाज सेवा की दृष्टि से भी शोध एवं अनुसन्धान कर सकता है।

(iii) शोध करने का व्यक्तिगत उद्देश्य समाज में सम्मान प्राप्त करना भी हो सकता है।

(iv) कुछ व्यक्ति रचनात्मक कार्य करने में आनन्द का अनुभव प्राप्त करते हैं।

(v) इसी प्रकार एक शोधकर्ता ऐसी समस्याओं का समाधान करने सम्बन्धी चुनौती स्वीकार करना उचित समझता है जिनका वर्तमान में कोई समाधान नहीं है।

(vi) सरकारी निर्देशों के आधार पर भी शोध करना अनिवार्य हो सकता है।

उद्देश्य के आधार पर शोध के प्रकार

उद्देश्य के आधार पर- उद्देश्य के आधार पर शोध निम्न प्रकार का हो सकता है-

(1) मौलिक सैद्धान्तिक शोध ( Fundamental, Pure or Basic, Research)- नये सिद्धान्तों का सूत्रपात अथवा पुराने सिद्धान्तों की समीक्षा तथा संशोधन मौलिक शोध का विषय है। इसमें ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य सामान्यीकरण के द्वारा सिद्धान्तों की व्याख्या करना होता है। मौलिक अनुसन्धान में यह भी देखा जाता है कि क्या परिवर्तित परिस्थितियों में पुराने सिद्धान्त उचित हैं अथवा नहीं। यदि पुराने सिद्धान्त वर्तमान सन्दर्भ में ठीक न हों तो उन्हें अस्वीकृत कर नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है। वास्तव में मौलिक अनुसन्धान का उद्देश्य उपलब्ध ज्ञान में अभिवृद्धि कर उसे समष्टि (Universe) में प्रयुक्त करने योग्य बनाया है।

(2) व्यावहारिक शोध ( Applid Research)- व्यावहारिक शोध में मौलिक शोध से प्राप्त परिणामों को वास्तविक घटनाओं तथा परिस्थितियों पर लागू कर प्राप्त परिणामों के आधार पर निष्कर्ष ज्ञात किये जाते हैं। पी०वी० यंग के अनुसार, “ज्ञान की खेज का निश्चित सम्बन्ध लोगों की प्राथमिक आवश्यकताओं एवं कल्याण से होता है। वैज्ञानिक की मान्यता यह होती है कि समस्त ज्ञान मूलभूत रूप से इस अर्थ में उपयोग होता है कि वह इस सिद्धान्त के निर्माण में या एक कला को व्यवहार में लाने में सहायक होता है, सिद्धान्त और व्यवहार आगे जाकर एक- दूसरे में मिल जाते हैं।” इस प्रकार व्यावहारिक अनुसन्धान की संज्ञा उसे दी जाती है जिसमें ज्ञानक्षप्राप्ति मानवीय भाग्य के सुधार में सहायता प्रदान कर सके।

(3) क्रिया शोध ( Action Research)- एक ऐसा शोध क्रिया शोध कहलाता है जो किसी समस्या अथवा घटना के क्रिया पक्ष पर बल देता है। विकास की गति को बढ़ाने के लिए तथा अपूर्ण आवश्यकताओं की प्रभावपूर्ति के लिए क्रिया शोध आवश्यक है।

अनुसंधान क्रियाविधि – महत्वपूर्ण लिंक

  • शोध या अनुसन्धान की अवधारणा | शोध की विधि | शोध के स्रोत की विधि एवं महत्व
  • अनुसंधान या शोध प्रक्रिया | शोध प्रक्रिया के प्रमुख चरण | शोध की सीमायें
  • शोधकर्ता | शोधकर्ता के गुण | शोधकर्त्ता से आशय
  • अनुसन्धान के प्रकार | विशुद्ध या मौलिक अनुसन्धान | व्यावहारिक अनुसन्धान | अर्द्धसामाजिक अनुसन्धान | विशुद्ध और व्यावहारिक अनुसन्धान में अन्तर
  • अनुसंधान समस्या का चयन एवं निरूपण | अनुसंधान की अवस्थायें | समस्या का निरूपण एवं चयन की आवश्यकता
  • अनुसंधान समस्या का चयन करते समय ध्यान देने योग्य बातें | अनुसंधान-समस्या के चयन के मौलिक अधिकारों का विवरण

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क्रियात्मक शोध के चरण

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क्रियात्मक शोध के चरण 

क्रियात्मक शोध के चरण

प्रथम सोपान- समस्या चयन ( Selection of the Problem)

किसी भी अनुसन्धान का सबसे पहला सोपान वह समस्या होती है जिसके सम्बन्ध में अनुसन्धान किया जाना है; क्योंकि समस्या के अभाव में समाधान किसका किया जाए? समस्या के समाधान के लिए आवश्यकता है-अनुसन्धान की। अत: अनुसन्धानकर्ता को सबसे पहले उस समस्या को समझना चाहिए, जिसे वह हल करना चाहता है; क्योंकि समाधान हेतु की गई समस्त क्रियाएँ भी समस्या से सम्बन्धित ही होंगी। जब शिक्षक या अनुसन्धानकर्ता को अपनी समस्या का ही पता नहीं होगा तो उसके द्वारा किए गए समस्त प्रयास निरर्थक ही होंगे; परन्तु उन्होंने जो भी प्रयत्नों की रूपरेखा बनाई, उसमें मौखिक अभिव्यक्ति के अतिरिक्त लिखित अभिव्यक्ति को कहीं स्थान ही नहीं था। इसका आशय स्पष्ट था कि उनकी दृष्टि में उच्चारण एवं वर्तनी दोनों एक ही हैं। यथार्थतः, दोनों एक न होकर अलग-अलग हैं। यद्यपि दोनों परस्पर सम्बद्ध अवश्य हैं; परन्तु एक नहीं। उच्चारण का सम्बन्ध मौखिक अभिव्यक्ति से है तो वर्तनी का सम्बन्ध लिखित अभिव्यक्ति से। अतः किसी समस्या का समाधान खोजने से पूर्व उस समस्या को भली-भाँति समझा जाना चाहिए।

द्वितीय सोपान – समस्या को परिभाषित करना (Defining the Problem)

इसके अन्तर्गत-आप जिस समस्या पर कार्य कर रहे हैं, उसको स्पष्ट कीजिए कि वास्तव में उस समस्या से आपका तात्पर्य क्या है; उदाहरण के लिए-वर्तनी वाली समस्या को ही बताइए कि अधिकतर लड़के लिखने में अशुद्धियाँ करते हैं। वे ‘बीड़ी’ का ‘बिड़ी’, ‘फूल’ का ‘फुल’ लिखते हैं।

तृतीय सोपान – समस्या सीमांकन (Delimiting the Problem)

इसके अन्तर्गत-समस्या के उस क्षेत्र को बताइए जहाँ आप कार्य करेंगे; उदाहरणार्थ-वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ तो प्रत्येक पाठशाला के छात्र कर सकते हैं; परन्तु आप सभी पाठशालाओं के सभी छात्रों की अशुद्धियों का संशोधन कर सकें-यह कम ही सम्भव है। अत: आपको अपनी समस्या के समाधान हेतु अपनी पाठशाला को चुनना पड़ेगा। अपनी पाठशाला में भी यदि बहुत-सी कक्षाएँ हैं तो यह सम्भव नहीं कि आप सभी कक्षाओं में सभी छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर कर सकें। ऐसी स्थिति में आपको अपनी कक्षा या कुछ सीमित कक्षाएँ ही लेनी पड़ेंगी और इस सोपान के अन्तर्गत उस पाठशाला एवं कक्षा का उल्लेख करना होगा, जिसमें आप अपना अनुसन्धान कार्य करेंगे!

चतुर्थ सोपान – समस्या के सम्भावित कारणों का पता लगाना तथा कारणों का विश्लेषण

इस सोपान के अन्तर्गत उन कारणों पर विचार कीजिए जो वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों मूल कारण हैं; उदाहरण के लिए निम्न कारण हो सकते हैं-

  • बालकों का अशुद्ध उच्चारण,
  • उच्चारण पर स्थानीय प्रभाव,
  • वर्तनी सम्बन्धी के नियमों से अनभिज्ञ होना,
  • शिक्षकों का अपूर्ण ज्ञान आदि।

अब पुनः इन कारणों पर विचार कीजिए और देखिए कि इन सभी कारणों में सबसे प्रमुख कारण कौन-सा है ?

पंचम सोपान – क्रियात्मक परिकल्पना-निर्माण (Formulation of Action Hypothesis)

इसके अन्तर्गत-आप उन क्रियाओं पर विचार कीजिए, जिनके द्वारा समस्या के ऊपर दिए हुए कारणों को मिटाया या दूर किया जा सके; उदाहरण के लिए-हम छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करने के लिए कई क्रियायें अपना सकते हैं। क्रियायें हो सकती हैं-

  • पहले शिक्षकों द्वारा की जाने वाली वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करने के लिए उपलब्ध साधन-सुविधाओं के अनुसार शिक्षक संगोष्ठियों का आयोजन करें। एक ही पाठशाला के सभी शिक्षक एक साथ बैठकर इस पर विचार कर सकते हैं।
  • पुनः, विद्यार्थियों की सामान्य अशुद्धियाँ, अर्थात् उन अशुद्धियों को दूर करने के लिए जो प्रायः अधिकतर विद्यार्थियों द्वारा की जाती हैं; सामूहिक कार्यक्रम चलायें। इस कार्यक्रम में उन्हें वर्तनी सम्बन्धी नियमों से अवगत करायें।
  • विद्यार्थियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से की जाने वाली वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों को अलग से; अर्थात् व्यक्तिगत रूप से ही विद्यार्थियों को बतायें।

षष्ठ सोपान – अभिकल्प निर्माण एवं उपकरणों का विकास (Developing Design and Tools for Action Hypothesis)

इस सोपान के अन्तर्गत-आप उन सभी बातों पर विचार कीजिए, जिनके द्वारा आप अपने प्रयत्नों का मूल्यांकन कर सकें। मूल्यांकन हेतु जो भी उदाहरण तैयार करने हों, उनका निर्माण-उल्लेख भी इसी सोपान के अन्तर्गत कीजिए; उदाहरण के लिए-ऊपर की समस्या के लिए ही वर्तनी सुधार के लिए किए गए प्रत्येक प्रयत्न के पश्चात् उसके परिणामों का परीक्षण किया जा सकता है और उसके लिए उन शब्दों की सूची तैयार की जा सकती है, जिन्हें लिखने में बालक प्रायः भूल करते हैं। इसी सूची के शब्दों को समयान्तर से लेखनी की दृष्टि से समान शब्दों द्वारा बदला जा सकता है।

सप्तम सोपान – विश्लेषण (Analysis)

इस सोपान के अन्तर्गत समस्या के समाधान हेतु आपके द्वारा किए गए प्रयासों या प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कीजिए। इसमें सांख्यिकीय गणना के आधार पर आप यह ज्ञात कर सकते हैं कि आपके द्वारा छात्रों की वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियों के सुधार में क्या और कितना परिवर्तन आया ?

अष्टम सोपान – निष्कर्ष (Conclusion)

इसके अन्तर्गत आप अपने द्वारा वर्तनी सुधार के प्रयलों में जिस निष्कर्ष पर पहुँचे, उसका उल्लेख कीजिए और बताइए कि विद्यार्थियों में क्या परिवर्तन आया और यदि आपके प्रयत्नों में कोई कमी रह गई तो है उसे आगे कैसे दूर किया जा सकता है ?

उपकरण निर्माण- अनुसंधान समस्या से सम्बन्धित परिकल्पना की रचना के पश्चात् उसके परीक्षण के लिए आवश्यक तथा तर्कसंगत आँकड़ों के संकलन की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रयुक्त साधन को उपकरण कहते हैं। क्रियात्मक अनुसंधान में समस्या न्यादर्श व जनसंख्या को ध्यान में रखकर उपयोगितानुसार उपकरणों का निर्माण किया जाता है। क्रियात्मक अनुसंधान में उपकरण इस प्रकार हो सकते हैं- प्रश्नावली, सर्वेक्षण, अवलोकन, साक्षात्कार, अनुसूची, अनुश्रवण, पर्यवेक्षण, अनुभवों का संयोजन तथा निरीक्षण के स्वरूप में होते हैं।

उपकरण के निर्माण में ध्यान रखना चाहिए कि उपकरण में उत्तरदाता को ज्यादा लिखना न पड़े तथा उसके मन में स्वाभाविक बात निकल आए और उपकरणों से प्राप्त होने वाले तथ्य विश्वसनीय, वैध व वस्तुनिष्ठ हों। उपकरण लिखित, मौखिक, भौतिक-सूक्ष्म परिकल्पना की आवश्यकता व न्यादर्श की पूर्ण क्षमता अनुसार होना चाहिए।

महत्वपूर्ण लिंक

  • निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Guidance in Hindi)
  • क्रियात्मक अनुसन्धान (Action Research)- अर्थ, क्षेत्र (Scope), महत्व, लाभ
  • क्रियात्मक शोध के चरण या सोपान (Steps of Action Research)
  • शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)-परिभाषा, विशेषताएँ, सिद्धान्त
  • शैक्षिक निर्देशन-उद्देश्य एवं आवश्यकता (Objectives & Need)
  • व्यावसायिक निर्देशन (Vocational guidance)- अर्थ, उद्देश्य, शिक्षा का व्यावसायीकरण
  • परामर्श (Counselling)- परिभाषा, प्रकार, उद्देश्य, विशेषताएँ
  • व्यावसायिक निर्देशन- आवश्यकता एवं उद्देश्य (Need & Objectives)
  • अनुसंधान (Research)- अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य और वर्गीकरण
  • विशेष शिक्षा की आवश्यकता | Need for Special Education
  • New Education Policy 1986- Characteristics & Objectives in Hindi
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1992 की संकल्पनाएँ या विशेषताएँ- NPE 1992

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क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान एवं प्रविधियाँ | Steps of Action Research in Hindi

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान एवं प्रविधियाँ | Steps of Action Research in Hindi

इतिहास शिक्षण में क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख सोपानों की विवेचना कीजिए।

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान एवं प्रविधियाँ (Steps of Action Research)

क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख सोपान एवं प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं-

  • समस्या की पहचान एवं परिभाषीकरण (To Identify and Define the Problem),
  • समस्या के सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण (Analysis of Causes of the Problem),
  • क्रियात्मक परिकल्पना का निर्माण (Formulation of the Action Hypothesis),
  • क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण हेतु अनुसंधान की रूपरेखा तैयार करना (Preparation of Research Design to Test the Action Hypothesis)
  • निष्कर्ष निकालना (Deriving Conclusion )

(1) समस्या की पहचान एवं परिभाषीकरण – प्रत्येक सोपान का सबसे पहला सोपान यह होता है कि जिस समस्या का समाधान करना है उसे भली-भाँति पहचान लिया जाय। यह कार्य इस हेतु आवश्यक है कि जब तक समस्याओं की पहचान नहीं होगी तब तक उसका समाधान नहीं ढूँढ़ा जा सकेगा। प्रायः यह देखा जाता है कि विद्यालय के प्रधानाचार्य और शिक्षक समस्या से पूर्णतः परिचित नहीं होते। उन्हें समस्या का भली-भाँति ज्ञान नहीं होता फलस्वरूप उन्हें सर्वप्रथम समस्याओं को पहचानना चाहिए और तत्पश्चात् उसका ठीक प्रकार से विश्लेषण करके उसका परिभाषित एवं सीमांतित रूप प्रस्तुत करना चाहिए। समस्या को परिभाषित करते समय उसके अन्तर्गत बहुअर्थक और जटिल शब्दों का सरल अर्थ स्पष्ट कर लेना चाहिए। समस्या सीमांकन करने के लिए उसके अत्यन्त व्यापक स्वरूप को थोड़ा विशिष्ट बना लेना चाहिए।

(2) समस्या से सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण – अनुसंधानकर्ता को यह चाहिए कि जब उसके द्वारा समस्या का विशिष्ट रूप निश्चित कर लिया जाय तो साक्ष्यों सहित उससे सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण करें। उसके द्वारा सम्बद्ध कारणों की एक सुस्पष्ट और विस्तृत सूची तैयार की जानी चाहिए तथा कारणों के सामने उनके साक्ष्यों का भी उल्लेख किया जाना चाहिए।

(3) क्रियात्मक परिकल्पना का निर्माण- समस्या से सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण कर लेने के पश्चात् उसके समाधान पर विचार किया जाता है। यह विचार किया जाता है कि यदि हमारे द्वारा ऐसा कार्य किया जायेगा तो समस्या का समाधान निकल आयेगा। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि समस्या का एक सम्भावित समाधान निकाला जाता है और एक निश्चित दिशा में कार्य करने हेतु कदम बढ़ाया जाता है। इस तरह संक्षेप में, क्रियात्मक परिकल्पना किसी समस्या के सम्भावित समाधान हेतु दिया गया सुझाव है।

(4) क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण हेतु अनुसंधान की रूपरेखा तैयार करना- परिकल्पना का निर्माण करने के बाद उसके यथार्थ और प्रभावशीलता का परीक्षण करना आवश्यक है। इस कार्य के लिए अनुसंधान की एक रूपरेखा तैयार की जाती है। इस तरह की रूपरेखा तैयार कर लेने से अनुसंधानकर्ता को काफी आसानी हो जाती है। इस कल्पना की यथार्थता का पता लगाने में अशुद्धियों के होने की बहुत कम सम्भावना रहती है। अनुसंधानकर्त्ता अपनी कार्य-विधियों में होने वाली भूलों को सफलतापूर्वक पहचान लेता है और कुछ निश्चित परिणामों तक पहुँच जाता है। यही नहीं बल्कि सम्पूर्ण अनुसंधान कार्य पूरी तरह से वैज्ञानिक हो जाता है।

क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण के लिए तैयार की गयी रूपरेखा में निम्न बातों का समावेश होता है-

  • क्रियाएँ जो प्रारम्भ करनी हैं-क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण के हेतु जिन •क्रियाओं को प्रारम्भ करना है उनका स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया जाता है।
  • विधि-इन क्रियाओं को सम्पादित करने हेतु जिस विधि का प्रयोग किया जायेगा उसका वर्णन किया जाता है।
  • अपेक्षित साधन-इन क्रियाओं के सफलतापूर्वक सम्पादन के लिये जिन साधनों की आवश्यकता होती है उनका उल्लेख किया जाता है।
  • अनुमानित समय-क्रियाओं के सम्पादन में जो अनुमानित समय लगता हैं उसका उल्लेख किया जाता है।

(5) निष्कर्ष निकालना- परिकल्पना का परीक्षण करने के पश्चात् उसका निष्कर्ष निकाला जाता है, सामान्यीकरण प्राप्त किए जाते हैं तथा उनका पुनर्परीक्षण किया जाता है। प्राप्त परिणाम के आधार पर परिकल्पना को सत्य अथवा असत्य घोषित किया जाता है। यदि उस परिकल्पना के अन्तर्गत सम्पादित क्रियाओं द्वारा लक्ष्य की प्राप्ति होती है तो परिकल्पना को सत्य माना जाता है, परन्तु जब लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती तो परिकल्पना को असत्य अथवा अस्वीकृत मान लिया जाता है। परिकल्पना को अस्वीकार कर देने के पश्चात् दूसरी नई परिकल्पना का निर्माण किया जाता है और तत्पश्चात् उसका परीक्षण करके निष्कर्ष निकाला जाता है।

क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख तत्त्व (Important Elements of Action Research)

क्रियात्मक अनुसंधान के सोपानों का परिचय प्राप्त करने के पश्चात् उसके प्रमुख तत्त्वों की जानकारी भी आवश्यक हो जाती है। इसके प्रमुख तत्व निम्न हैं-

  • क्रियात्मक अनुसंधान का प्रमुख तत्त्व ऐसे समस्या क्षेत्र से परिचित होना है जो कि एक व्यक्ति अथवा समूह को इतना महत्त्वपूर्ण लगे कि वह किसी क्रिया को करने हेतु तैयार हो।
  • एक विशिष्ट समस्या का चयन तथा उससे सम्बन्धित परिकल्पना का निर्माण।
  • एक उद्देश्य का निर्धारण और उस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उपयुक्त विधि का चयन।
  • प्रदत्त सामग्री का एकत्रीकरण और उसका विश्लेषण।
  • विश्लेषण के आधार पर यह देखना कि उद्देश्य की प्राप्ति किस सीमा तक हो सकी है।
  • सामान्यीकरण प्राप्त किया जाना चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि प्रारम्भ की गयी क्रिया और वांछित उद्देश्य में क्या सम्बन्ध है।
  • प्राप्त सामान्यीकरणों का क्रियात्मक परिस्थितियों में परीक्षण किया जाना चाहिए।

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  • आदर्श इतिहास शिक्षक के गुण एंव समाज में भूमिका
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  • राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के विषय में आप क्या जानते हैं ?
  • शिक्षा के वैकल्पिक प्रयोग के सन्दर्भ में एस० एन० डी० टी० की भूमिका
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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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शोध प्रतिवेदन लेखन Writing a Research Report

  • December 2016

Patanjali Mishra at University of Allahabad

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अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा | अनुसंधान प्ररचना के प्रकार | Research Design in Hindi

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

अनुक्रम (Contents)

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा- अनुसंधान प्ररचना शब्द समझने के लिये पहले ‘अनुसंधान’ तथा ‘प्ररचना’ शब्दों का अर्थ समझ लेना जरूरी है। सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य के अनुसार “सामाजिक अनुसंधान का अर्थ सामाजिक घटनाओं तथा तथ्यों के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त करना है अथवा पूर्व अर्जित ज्ञान में संशोधन, सत्यापन एवं संवर्द्धन करना है। एकोफ (Ackoff) ने प्ररचना शब्द की व्याख्या उपमा (Analogy) द्वारा की है। एक भवन निर्माणकर्ता भवन की प्ररचना पहले से ही बना लेता है कि यह कितना बड़ा होगा, इसमें कितने कमरे होगें, कौन सी सामग्री का प्रयोग इसमें किया जायेगा इत्यादि। ये सब निर्णय वह भवन निर्माण से पहले ही ले लेता है ताकि भवन के बारे में एक ‘नक्शा’ बना ले तथा यदि इसमें किसी प्रकार का संशोधन करना है तो निर्माण शुरु होने से पहले ही किया जा सके। ‘प्ररचना का अर्थ योजना बनाना है, अर्थात प्ररचना पूर्व निर्णय लेने की प्रक्रिया है ताकि परिस्थिति पैदा होने पर इसका प्रयोग किया जा सके। यह सूझ-बूझ एवं पूर्वानुमान की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य अपेक्षित परिस्थिति पर नियंत्रण रखना है।” इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान की समस्या तथा उसमें प्रयुक्त होने वाली प्रविधियों पर नियंत्रण करने के लिये पूर्व निर्धारित निर्णयों की रूपरेखा ही अनुसंधान प्ररचना है।

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सैल्टिज जहोदा तथा अन्य के अनुसार, जब अनुसंधानकर्ता ने समस्या का निर्माण कर लिया है। तथा यह निर्धारण कर लिया है कौन सी सामग्री उसे एकत्रित करनी है तो उसे अनुसंधान प्ररचना बनानी चाहिये। इनके अनुसार अनुसंधान प्ररचना आँकड़ों के संकलन तथा विश्लेषण की दशाओं की उस व्यवस्था को कहते हैं जिसका लक्ष्य अनुसंधान के उद्देश्य की प्रासंगिकता तथा कार्यविधि की मितव्ययिता का। समन्वय करना है। एकोफ, सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य विद्वानों के विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुसंधान प्ररचना पूर्व निर्णय की एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मितव्ययिता के आधार पर समस्या से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करना और आने वाले परिस्थितियों को नियंत्रित करना है। साथ ही अनुसंधान के लक्ष्य के आधार पर भिन्न प्रकार की प्ररचनायें बनायी जा सकती हैं। अतः अनुसंधान प्ररचना इनसे सम्बन्धित सर्वाधिक उपयुक्त एवं सुविधाजनक योजना है। जिसका उद्देश्य अनुसंधानकर्ता को दिशा प्रदान करना तथा मानव-श्रम की बचत करना है। सम्पूर्ण अनुसंधान प्ररचना को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है –

1. निदर्शन प्ररचना (Sampling Design) – इसमें अध्ययन की प्रकृति के अनुसार निदर्शन की इकाइयों के आकार तथा निदर्शन की पद्धति के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है।

2. अवलोकनात्मक प्ररचना (Observational Design) – इसमें उन दशाओं के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है जिनके अन्तर्गत अवलोकन किया जाना है अथवा अन्य किसी प्रविधि द्वारा सामग्री संकलित की जानी है।

3. सांख्यिकीय प्ररचना (Statistical Design) – इसका सम्बन्ध संकलित सामग्री के सांख्यिकीय विश्लेषण से है अर्थात यह पूर्व निर्णय लेने से है कि सामग्री के विश्लेषण हेतु किन-किन सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया जायेगा।

4. संचालन प्ररचना (Operational Design)- इसका सम्बन्ध उन प्रविधियों के बारे में पूर्व निर्णय लेने से है। जिनके द्वारा उपर्युक्त तीनों प्ररचनाओं अर्थात निदर्शन प्ररचना अवलोकनात्मक प्ररचना तथा सांख्यिकीय प्ररचना सम्बन्धी कार्यप्रणालियों को लागू किया जाना है। संचालन प्ररचना द्वारा ही अन्य तीनो प्ररचनाओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।

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अतः विद्वानों ने अनुसंधान प्ररचना के कुछ विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है जोकि निम्नलिखित हैं-

अनुसंधान प्ररचना के प्रकार (Types of Research Design)

अनुसन्धान प्ररचना के प्रकार अनुसन्धान प्ररचना या अनुसन्धान अभिकल्प को चार भागों में विभाजित किया गया है-

1. अन्वेषणात्मक अथवा निरूपणात्मक अनुसंधान अभिकल्प या प्ररचना

जब किसी अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किन्ही सामाजिक घटनाओं में अन्तर्निहित कारणों को ढूंढ निकालना होता है तो उससे सम्बन्धित रूपरेखा को अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं। इस प्रकार के अनुसंधान अभिकल्प में शोध कार्य की रूपरेखा इस तरीके से प्रस्तुत की जाती है कि घटना की प्रकृति व धारा प्रवाहों की वास्तविकताओं की खोज की जा सके। विषय अथवा समस्या के चुनाव के पश्चात् प्राक्कल्पना का 5 सफलतापूर्वक निर्माण करने के लिए इस प्रकार के अभिकल्प का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसकी सहायता से हमारे लिए विषय का कार्य-कारण सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि हमें किसी विशेष सामाजिक परिस्थिति में विवाह-विच्छेद प्राप्त व्यक्तियों में व्याप्त यौन व्यभिचार के विषय में अध्ययन करना है, तो उसके लिए सर्वप्रथम उन कारकों का ज्ञान आवश्यक है जो कि उस प्रकार के व्यभिचार को पैदा करते हैं। अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प इन्ही कारणों को खोज निकालने की एक योजना बन सकती है। इसी तरह से कभी-कभी समस्या के चुनाव तथा अनुसन्धान कार्य के लिए उसकी उपयुक्तता के सम्बन्ध में हमें अन्य किसी स्रोत से ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता है, तब उस अवस्था में अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प की सहायता से हमें बहुत सहायता मिल सकती है। इस प्रकार की अनुसन्धान अभिकल्प की सफलता के लिए कुछ अनिवार्यताओं का पालन करना होता है जो निम्नलिखित है-

(अ) सम्बद्ध साहित्य का अध्ययन

(ब) अनुभव सर्वेक्षण

(स) अन्तर्दृष्टि प्रेरक घटनाओं का विश्लेषण।

  • भारत में काले धन या काले धन की समस्या का अर्थ, कारण, प्रभाव या दोष

2. वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प

विषय या समस्या के सम्बन्ध में सम्पूर्ण वास्तविक तथ्यों के आधार पर उनका विस्तृत वर्णन करना ही वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प का प्रमुख उद्देश्य है। इस पद्धति में आवश्यक है कि हमें वास्तविक तथ्य प्राप्त हो तभी हम उसकी वैज्ञानिक विवेचना करने में सफल हो सकते हैं। यदि समाज की किसी समस्या का विवरण देना है, तो उस समस्या के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित तथ्य प्राप्त होने चाहिए, जैसे निम्न श्रेणी के परिवारों का विवरण देना है, तो उसकी आयु, सदस्यों की संख्या, शिक्षा का स्तर व्यावसायिक ढाँचा, जातीय और पारिवारिक संरचना आदि से सम्बन्धित तथ्य, जब तक प्राप्त नहीं होते तब तक हम उसके वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत नहीं कर सकते। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हम अपना अनुसंधान अभिकल्प विषय के उद्देश्य के अनुसार बनायें।

3. परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प

भौतिक विज्ञानों की तरह समाजशास्त्र भी अपने अनुसन्धान कार्यों में परीक्षण प्रणाली का उपयोग कर अधिकाधिक यथार्थता लाने का प्रयत्न कर रहा है। भौतिक विज्ञानों में जिस तरह कुछ नियन्त्रित अवस्थाओं में रखकर विषय का अध्ययन किया जाता है, उसी में प्रकार नियन्त्रित दशाओं में रखकर निरीक्षण परीक्षण के द्वारा सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करने रूपरेखा को परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं।

4. निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना

अनुसन्धान कार्य का मूलभूत उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति एवं ज्ञान की वृद्धि करना है। किन्तु यह भी सम्भव है कि अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किसी समस्या के कारणों के सम्बन्ध में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उस समस्या के समाधानों को भी प्रस्तुत करना हो। इस प्रकार के अनुसन्धान अभिकल्प को निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना कहते हैं। दूसरे शब्दों में में, विशिष्ट सामाजिक समस्या के निदान की खोज करने वाले अनुसन्धान कार्य को, निदानात्मक अनुसन्धान कहते हैं।

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Lok Sahitya Ke Ashar Par Adi Janjati Ke Bhoo-Aitihasik Evam Dashanik Avasthiti Ka Moolyankan. Name of the Principal Investigator : Prof. Oken Lego Sponsoring Agency : National Security Council, Govt. of India) Amount Sanctioned (₹) :4,00,000 Duration (in years) :2 Status :Completed
Hindi- Adi Adhyeta Kosh Nirman Name of the Principal Investigator : Prof. Oken Lego Sponsoring Agency : Kendriya Hindi Sansthan, Agra Amount Sanctioned (₹) : 12,00,000 Duration (in years) : 2 Status : Completed
Adi Lok-Sahitya Ka- Sangarh, Sampadan tatha Moolyankan Name of the Principal Investigator : Prof. Oken Lego Sponsoring Agency : Kendriya Hindi Sansthan, Agra Amount Sanctioned (₹) : 2,00,000 Duration (in years) : 2 Status : Completed
Poorvottar Bharat Ke Janjatiyon Ka Darshan Evam Sanskrit (Arunachal Pradesh Ke Vishesh Sandarbh Mein) Name of the Principal Investigator : Dr. Satya Prakash Paul Sponsoring Agency : Indian Council Philosophical Research (ICPR) New Delhi Amount Sanctioned (₹) : 3,00,000 Duration (in years) : 2 Status : Completed

Samar Education

Samar Education

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं एवं उद्देश्य | action research meaning, types, definitions and objectives, क्रियात्मक अनुसंधान (action research).

क्रियात्मक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मौलिक समस्याओं का अध्ययन करके नवीन तथ्यों की खोज करना, जीवन सत्य की स्थापना करना तथा नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना है। अनुसंधान एक सोद्देश्य प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानव ज्ञान में वृद्धि की जाती है। इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है। क्रियात्मक अनुसंधान को संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग पर अधिक बल देते हैं।

Action Research Meaning

आधुनिक युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति लाने के लिए अनुसंधान कार्य को बहुत महत्व दिया जाता है. शिक्षा के क्षेत्र में आज अनेक ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं जिनका सामना शिक्षा से संबंधित प्रत्येक व्यक्तियों को करना पड़ता है. शिक्षा की विविध समस्याओं का समाधान करने के लिए और व्यवहारिक रूप से वांछित परिवर्तन करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में भी शोध कार्य या अनुसंधान की आवश्यकता है.

इस दृष्टि से शिक्षा क्षेत्र में जो अनुसंधान कार्य होते हैं वह शिक्षण के सिद्धांत पक्ष को सबल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, किंतु शिक्षा की क्रियात्मक या व्यावहारिक पक्ष में अनुसंधान कार्य से कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. ऐसी स्थिति में एक ऐसी पद्धति की आवश्यकता का अनुभव किया गया जिसके फलस्वरूप विद्यालय से संबंधित समस्याओं का समाधान खोजा जा सके और विशिष्ट स्थिति में परिवर्तन और सुधार किया जा सके इन विचारों के फलस्वरुप क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व बढ़ा.

क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षक की समस्याओं के समाधान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण उपकरण है. इसके अंतर्गत शिक्षण की समस्याओं का वैज्ञानिक विधि से समाधान खोजा जाता है. क्रियात्मक अनुसंधान विद्यालय के कार्य पद्धति में विकास करने का एक सबल साधन है. इसके माध्यम से शिक्षक अपनी कक्षा तथा विद्यालय के समस्याएं सुलझाने का प्रयत्न करता है. आज शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए अनुसंधान होते जा रहे हैं जिनका उद्देश्य शिक्षा को उत्तम बनाना है और शिक्षा संबंधित समस्याओं को सुलझाना है. क्रियात्मक अनुसंधान, अनुसंधान की प्रक्रिया को गति प्रदान करता है. क्रियात्मक अनुसंधान समस्याओं के अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धति है, जो ज्ञान की खोज के लिए किया जाता है.

वास्तव में यह निरंतर गहरी तथा सौद्देश्य प्रक्रिया है, जो सत्य की खोज करती है. साथ ही साथ उसका लक्ष्य उन्नति एवं उत्तम करने मे सहायक है. अतः कहा जा सकता है कि अनुसंधान एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ठ तथा सौद्देश्य क्रिया है, जिसका प्रमुख ध्येय ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि करना, सत्यता की पुष्टि करना तथा नए तथ्यों, सत्यों एवं सिद्धांतों का निर्माण और प्रतिपादन करना होता है. शैक्षिक अनुसंधानों का अंतिम लक्ष्य शिक्षण नियमों तथा उनकी पुष्टि करना होता है.

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Action Research)

विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों द्वारा अपनी और विद्यालय की समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करके अपनी क्रियाओं और विद्यालय की गतिविधियों में सुधार लाना क्रियात्मक अनुसंधान कहलाता है। इसकी कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:-

1. मेक ग्रेथटे के अनुसार, "क्रियात्मक अनुसंधान व्यवस्थित खोज की क्रिया है जिसका उद्देश्य व्यक्ति समूह की क्रियाओं में रचनात्मक सुधार तथा विकास लाना है।"

2.स्टीफन एम. कोरे के अनुसार, “शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।"

3. मुनरो के अनुसार, "अनुसंधान समस्याओं को सुलझाने की वह विधि है, जिसमें सुझावों की पुष्टि तथ्यों द्वारा की जाती है।"

4. मौले के अनुसार, "शिक्षक के समक्ष उपस्थित होने वाली समस्याओं में से अनेक तत्काल ही समाधान चाहती है। मौके पर किये जाने वाले ऐसे अनुसंधान जिसका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है, शिक्षा में साधारणतः क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से प्रसिद्ध है।"

क्रियात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य (Objectives of Action Research)

  • विद्यालय की कार्य प्रणाली में सुधार तथा विकास करना। 
  • छात्रों तथा शिक्षकों में प्रजातन्त्र के वास्तविक गुणों का विकास करना। 
  • विद्यालय के कार्य-कर्ताओं, शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक तथा निरीक्षकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।
  • विद्यालय के कार्य-कर्ताओं में कार्य कौशल का विकास करना।
  • शैक्षिक प्रशासकों तथा प्रबन्धकों को विद्यालयों की कार्य प्रणाली में सुधार तथा परिवर्तन के लिये सुझाव देना।
  • विद्यालय की परम्परागत रूढ़िवादिता तथा यान्त्रिक वातावरण को समाप्त करना।
  • विद्यालय की कार्य प्रणाली को प्रभावशली बनाना।
  • छात्रों के निष्पत्ति स्तर को ऊँचा उठाना।

क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र (Scope of Action Research)

क्रियात्मक अनुसन्धान को विद्यालय की कार्य प्रणाली के अधोलिखित क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है:-

  • कक्षा शिक्षण विधियों एवं युक्तियों में सुधार लाना है।
  • शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सहायक सामग्री जिसकी उपयोगिता के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिये इसका प्रयोग करते हैं।
  • छात्रों की अभिरूचि, ध्यान, तत्परता तथा जिज्ञासा में वृद्धि के लिये इसे प्रयुक्त करते हैं।
  • शिक्षकों द्वारा विभिन्न विषयों में दिये जाने वाले गृह कार्यों की प्रणाली को प्रभावशाली बनाने के लिये इसे प्रयोग करते हैं। 
  • छात्रों की अनुसन्धान सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिये इस प्रयुक्त करते हैं। 
  • भाषा शिक्षण में वर्तनी तथा वाचन की समस्याओं के लिये तथा भाषाई शुद्धि के लिए भी क्रियात्मक-अनुसन्धान को प्रयुक्त किया जाता है। 
  • छात्रों की अनुपस्थिति तथा विद्यालय विलम्ब से आने की समस्याओं के समाधान में इसे प्रयोग करते है। 
  • छात्रों एवं शिक्षक सम्बन्धी समस्याओं तथा छात्रों में परस्पर आदान-प्रदान की समस्याओं के लिये प्रयुक्त करते हैं।
  • परीक्षा में छात्रों के नकल करने की समस्याओं के समाधान में प्रयोग करते हैं।
  • विद्यालय के संगठन एवं प्रशासन से संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु प्रयोग करते हैं।

क्रियात्मक अनुसंधान के चरण/सोपान (Steps of Action Research)

  • समस्या का चयन
  • उपकल्पना का निर्माण
  • तथ्य संग्रहण की विधियाँ
  • तथ्यों का संकलन
  • तथ्यों का सांख्यिकीय विश्लेषण
  • तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष
  • सत्यापन
  • परिणामों की सूचना

एण्डरसन ने क्रियात्मक अनुसंधान के निम्न सात चरण बताये हैं:-

1. पहला सोपान (समस्या का ज्ञान):- क्रियात्मक-अनुसंधान का पहला सोपान है– विद्यालय में उपस्थित होने वाली समस्या को भली-भाँति समझना। यह तभी सम्भव है, जब विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रधानाचार्य आदि उसके सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करें। ऐसा करके ही वे वास्तविक समस्या को समझकर अपने कार्य में आगे सुधार करना चाहते हैं।

2. दूसरा सोपान (कार्य के लिए प्रस्तावों पर विचार विमर्श):- क्रियात्माक-अनुसंधान का दूसरा सोपान है– समस्या को भली-भांति समझने के बाद इस बात पर विचार करना कि उसके कारण क्या हैं और उसका समाधान करने के लिए हमें कौन-से कार्य करने हैं। शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक आदि इन कार्यों के सम्बन्ध में अपने-अपने प्रस्ताव या सुझाव देते हैं। उसके बाद वे अपने विश्वासों, सामाजिक मूल्यों, विद्यालयों के उद्देश्यों आदि को ध्यान में रखकर उन पर विचार-विमर्श करते हैं।

3. तीसरा सोपान (योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण):- क्रियात्मक-अनुसन्धान का तीसरा सोपान है- विचार-विमर्श के फलस्वरूप समस्या का समाधान करने के लिए एक योजना का चयन और उपकल्पना का निर्माण करना। इसके लिए विचार-विमर्श करने वाले सब व्यक्ति संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते हैं। उपकल्पना में तीन बातों का सविस्तार वर्णन किया जाता है—

  • समस्या का समाधान करने के लिए अपनाई जाने वाली योजना,
  • योजना का परीक्षण,
  • योजना द्वारा प्राप्त किया जाने वाला उद्देश्य।

4. चौथा सोपान (तथ्य संग्रह करने की विधियो का निर्माण):- क्रियात्मक-अनुसंधान का चौथा सोपान है– योजना को कार्यान्वित करने के बाद तथ्यों या प्रमाणों का संग्रह करने की विधियाँ निश्चित करना—इन विधियों की सहायता से जो तथ्य संग्रह किये जाते हैं, उनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि योजना का क्या प्रभाव पड़ रहा है।

6. छठा सोपान (तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष):- क्रियात्मक अनुसंधान का छठा सोपान है– योजना की समाप्ति के बाद संग्रह किए हुए तथ्यों या प्रमाणों से निष्कर्ष निकालना।

7. सातवाँ सोपान (दूसरे व्यक्तियों को परिणामों की सूचना):- क्रियात्मक-अनुसंधान का सातवाँ और अन्तिम सोपान है– दूसरे व्यक्तियों को योजना के परिणामों की सूचना देना।

क्रियात्मक अनुसंधान के लाभ (Benefits of Action Research)

  • इससे शिक्षक अपनी कक्षा के वातारण में अपनी कार्यप्रणाली में सुधार तथा प्रगति करता है। 
  • शिक्षक शोध के पदों से परिचित होता है। 
  • शिक्षकों में वैज्ञानिक-प्रवृत्ति, शोध कार्य के लिए जाग्रत होती है।
  • इसके द्वारा विद्यालय के प्रशासन में सुधार तथा परिवर्तन लाया जाता है। 
  • यह विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों की विभिन्न दैनिक समस्यओं का व्यावहारिक एवं तथ्यपूर्ण समाधान करता है।
  • यह विद्यालय को आधुनिक तथा समयानुकूल बनाने का प्रयास करता है। 
  • इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष व्यवहारिक रूप से काफी सफल होते हैं।
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रिसर्च डिज़ाइन क्या है?

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  • Updated on  
  • नवम्बर 14, 2022

विज्ञान और टेक्नोलॉजी, कला और संस्कृति, मीडिया अध्ययन, भूगोल, गणित और अन्य विषय हों, रिसर्च हमेशा अज्ञात को खोजने का मार्ग रहा है। वर्तमान निराशाजनक परिस्थितियों में जब कोरोनावायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है, इसके इलाज के लिए टीके खोजने के लिए भारी मात्रा में रिसर्च किया जा रहा है। इस ब्लॉग में, हम समझेंगे कि विभिन्न प्रकार के रिसर्च डिज़ाइन और उनके संबंधित फैक्टर क्या है।

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एक रिसर्च डिज़ाइन क्या है, रिसर्च डिज़ाइन के लाभ, रिसर्च डिजाइन के तत्व, रिसर्च डिजाइन की विशेषताएं, ग्रुपिंग द्वारा रिसर्च डिज़ाइन प्रकार, जनसंख्या वर्ग स्टडी, क्रॉस सेक्शनल स्टडी, लोंगिट्यूडनल स्टडी, क्रॉस-सेक्युएंशियल स्टडी, क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव रिसर्च डिजाइन, फिक्स्ड बनाम फ्लेक्सिबल रिसर्च डिजाइन, रिसर्च डिज़ाइन ppt.

शोध’ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक कलेक्शन है जिसमें रिसर्च मेथड्स को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक हाइपोथिसिस स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन (कंपाइलेशन) है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है। रिसर्च अकादमिक के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार पर भी किया जा सकता है। आइए पहले समझते हैं कि रिसर्च डिज़ाइन का वास्तव में क्या अर्थ है।

रिसर्च डिजाइन एक रिसर्चर को अज्ञात में अपनी यात्रा को आगे बढ़ाने में मदद करता है लेकिन उनके पक्ष में एक सिस्टेमेटिक अप्रोच के साथ। जिस तरह से एक इंजीनियर या आर्किटेक्ट एक स्ट्रक्चर के लिए एक डिजाइन तैयार करता है, उसी तरह रिसर्चर विभिन्न तरीकों से डिजाइन को चुनता है, ताकि यह जांचा जा सके कि किस प्रकार का रिसर्च किया जाना है।

रिसर्च डिज़ाइन के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:

  • एक रिसर्च डिज़ाइन तैयार करने से रिसर्चर को अध्ययन के प्रत्येक चरण में सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  • यह अध्ययन के प्रमुख और छोटे कार्यों की पहचान करने में मदद करता है।
  • यह शोध अध्ययन को प्रभावी और रोचक बनाता है।
  • इससे एक रिसर्चर आसानी से शोध कार्य के उद्देश्यों को तैयार कर सकता है।
  • एक अच्छे रिसर्च डिज़ाइन का मुख्य लाभ यह है कि यह शोध को संतुष्टि,आत्मविश्वास, एक्यूरेसी, रिलियाबिलिटी, कंटीन्यूटी और वैलिडिटी  प्रदान करता है।
  • इसके द्वारा लिमिटेड रिसोर्सेज  में भी सभी कार्यों को बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
  • इससे रिसर्च में कम समय लगता है।

यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व दिए हैं:

  • एकत्रित विवरण का एनालिसिस  करने के लिए लागू की गई विधि
  • रिसर्च मेथड का प्रकार
  • सटीक उद्देश्य कथन
  • शोध के लिए संभावित आपत्तियां
  • रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें
  • एनालिसिस का मापन
  • शोध अध्ययन के लिए सेटिंग्स

रिसर्च डिज़ाइन

रिसर्च डिजाइन के प्रकार

अब जब हम व्यापक रूप से क्लासीफाइड प्रकार के रिसर्च को जानते हैं, तो क्वांटिटेटिव और क्वालिटेटिव रिसर्च को निम्नलिखित 4 प्रमुख प्रकार के research design in Hindi में विभाजित किया जा सकता है-

  • डिस्क्रिप्टिव रिसर्च डिजाइन
  • कॉरिलेशनल रिसर्च डिजाइन
  • एक्सपेरिमेंटल रिसर्च डिजाइन 
  • डायग्नोस्टिक रिसर्च डिजाइन
  • एक्सप्लेनेटरी रिसर्च डिजाइन 

अध्ययन डिजाइन प्रकारों का एक अन्य क्लासिफिकेशन इस पर आधारित है कि प्रतिभागियों को कैसे क्लासीफाइड किया जाता है। ज्यादातर स्थितियों में, समूहीकरण रिसर्च के आधार और व्यक्तियों के नमूने के लिए उपयोग की जाने वाली विधि द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्रायोगिक रिसर्च डिजाइन के आधार पर एक विशिष्ट अध्ययन में आम तौर पर कम से कम एक प्रयोगात्मक और एक नियंत्रण समूह होता है। चिकित्सा रिसर्च में, उदाहरण के लिए, एक समूह को चिकित्सा दी जा सकती है जबकि दूसरे को कोई नहीं मिलता है। तुम मेरा फॉलो समझो। हम प्रतिभागी समूहन के आधार पर चार प्रकार के अध्ययन डिजाइनों में अंतर कर सकते हैं:

एक को होर्ट अध्ययन एक प्रकार का अनुदैर्ध्य रिसर्च है जो पूर्व निर्धारित समय अंतराल पर एक समूह के क्रॉस-सेक्शन (एक सामान्य लक्षण वाले लोगों का एक समूह) लेता है। यह पैनल रिसर्च का एक रूप है जिसमें समूह के सभी लोगों में कुछ न कुछ समान होता है।

सामाजिक विज्ञान, चिकित्सा रिसर्च और जीव विज्ञान में, एक क्रॉस-अनुभागीय अध्ययन प्रचलित है। यह अध्ययन दृष्टिकोण किसी विशिष्ट समय पर जनसंख्या या जनसंख्या के प्रतिनिधि नमूने के डेटा की जांच करता है।

एक अनुदैर्ध्य अध्ययन एक प्रकार का अध्ययन है जिसमें एक ही चर को कम या लंबी अवधि में बार-बार देखा जाता है। यह आमतौर पर अवलोकन संबंधी शोध है, हालांकि यह दीर्घकालिक रेंडम  प्रयोग का रूप भी ले सकता है।

क्रॉस-अनुक्रमिक रिसर्च डिजाइन अनुदैर्ध्य और क्रॉस-अनुभागीय रिसर्च विधियों को जोड़ती है, दोनों में निहित कुछ दोषों की कंपनसेशन के लक्ष्य के साथ।

क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव research design in Hindi के बीच अंतर निम्नलिखित हैं-

परीक्षण के लिए विचारों और परिकल्पनाओं को रखने पर ध्यान केंद्रित करता है।विचारों को उत्पन्न करने और एक सिद्धांत या परिकल्पना विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करें।
स्थिति की जांच के लिए गणित और सांख्यिकीय एनालिसिस का इस्तेमाल किया गया।एनालिसिस करने के लिए डेटा को सारांशित करना, क्लासिफाइड करना और एनालिसिस करना उपयोग किया गया था।
संख्याएँ, ग्राफ़ और तालिकाएँ अभिव्यक्ति के सबसे सामान्य रूप हैं।ज्यादातर शब्दों के साथ रिप्रेजेंटेशन  किया
संख्याएँ, ग्राफ़ और तालिकाएँ अभिव्यक्ति के सबसे सामान्य रूप हैं।ज्यादातर शब्दों के साथ रिप्रेजेंटेशन किया
बंद प्रश्न (बहुविकल्पी)ओपन एंडेड पूछताछ
मुख्य शब्द: परीक्षण, माप, निष्पक्षता, प्रतिकृति क्षमतामुख्य शब्द: समझ, संदर्भ, जटिलता, विषयपरकता

स्थिर और फ्लेक्सिबल research design in Hindi के बीच एक अंतर भी खींचा जा सकता है। क्वांटिटेटिव (निश्चित डिजाइन) और क्वालिटेटिव  (लचीला डिजाइन) डेटा एकत्र करना अक्सर इन दो अध्ययन डिजाइन श्रेणियों से जुड़ा होता है। आपके द्वारा डेटा एकत्र करना शुरू करने से पहले ही रिसर्च डिज़ाइन एक निर्धारित अध्ययन डिजाइन के साथ पूर्व-निर्धारित और समझा जाता है। दूसरी ओर, लचीले डिज़ाइन, डेटा संग्रह में अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं – उदाहरण के लिए, आप निश्चित उत्तर विकल्प प्रदान नहीं करते हैं, इसलिए उत्तरदाताओं को अपने स्वयं के उत्तर देने होंगे।

Research design in Hindi के लिए PPT नीचे दी गई है-

चूंकि हम रिसर्च डिज़ाइन के प्रकारों से निपट रहे हैं, इसलिए यह समझना अनिवार्य है कि रिसर्च करने का अभ्यास कितना फायदेमंद है और इसके कुछ प्रमुख लाभ हैं: 1. रिसर्च विषय की गहरी समझ प्राप्त करने में मदद करता है। 2. आप इसके विविध पहलुओं के साथ-साथ इसके विभिन्न स्रोतों जैसे प्राथमिक और माध्यमिक के बारे में जानेंगे। 3. यह महत्वपूर्ण एनालिसिस और अनसुलझी समस्याओं के मापन के माध्यम से किसी भी क्षेत्र में जटिल समस्याओं को हल करने में मदद करता है।  4. आप यह भी जान पाएंगे कि संरक्षित मान्यताओं को तौलकर एक परिकल्पना कैसे बनाई जाती है।

रिसर्च ‘ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक संग्रह है जिसमें शोध पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक परिकल्पना स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है।

यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व है: 1. एकत्रित विवरण का एनालिसिस  करने के लिए लागू की गई विधि 2. रिसर्च पद्धति का प्रकार 3. सटीक उद्देश्य कथन 4. रिसर्च के लिए संभावित आपत्तियां 5. रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें 6. समय 7. एनालिसिस का मापन 8. रिसर्च स्टडीज के लिए सेटिंग्स

एक सुनियोजित शोध डिजाइन  यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि आपके तरीके आपके शोध के उद्देश्यों से मेल खाते हैं, कि आप उच्च-गुणवत्ता वाले डेटा एकत्र करते हैं, और यह कि आप विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करते हुए अपने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए सही प्रकार के विश्लेषण का उपयोग करते हैं  । यह आपको वैध, भरोसेमंद निष्कर्ष निकालने की अनुमति देता है।

रिसर्च के 5 घटक परिचय, साहित्य समीक्षा, विधि, परिणाम, चर्चा, निष्कर्ष है ।

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देवांग मैत्रेय

स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 7 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर/एडिटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।

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